पीला बुखार कारण,लक्षण,उपचार और टीकाकरण
पीला बुखार (Yellow Fever) क्या है?
पीला बुखार एक गंभीर वायरल संक्रमण है, जो मुख्यतः संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है। यह बीमारी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक पाई जाती है। इसका नाम “पीला बुखार” इसलिए पड़ा है, क्योंकि इससे प्रभावित मरीजों की त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है, जिसे पीलिया भी कहते हैं।
कारण
पीला बुखार का कारण एक वायरस है, जिसे “Yellow Fever Virus” कहते हैं। यह वायरस Flaviviridae परिवार से संबंधित है। इसका मुख्य वाहक विशेष प्रकार के मच्छर होते हैं, जैसे Aedes aegypti (शहरी इलाकों में) और Haemagogus (जंगली इलाकों में)। मच्छर जब किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर (जैसे बंदर) को काटता है, तो वह वायरस को अपने शरीर में ले लेता है और फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटने पर उसमें संक्रमण फैला देता है।
भारत में अभी तक पीला बुखार के मामले नहीं पाए गए हैं, लेकिन अगर कोई व्यक्ति संक्रमित क्षेत्रों से वापस आता है, तो वह भारत में भी इस रोग को फैला सकता है, अगर यहां पर इसके वाहक मच्छर मौजूद हों।
लक्षण
पीला बुखार के लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 3 से 6 दिन बाद दिखाई देते हैं। कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन ज्यादातर मामलों में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं:
बुखार: अचानक तेज बुखार आना
सिरदर्द: तेज सिरदर्द होना
मांसपेशियों में दर्द: पीठ और शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द
थकान: बहुत ज्यादा थकान और कमजोरी
मतली और उल्टी: जी मिचलाना और उल्टी होना
भूख न लगना: खाने की इच्छा न होना
ये लक्षण 3 से 4 दिनों तक रह सकते हैं और फिर कुछ लोगों में ये ठीक भी हो जाते हैं। लेकिन कुछ मरीजों में बीमारी गंभीर हो जाती है और दूसरा चरण शुरू होता है:
गंभीर चरण के लक्षण
पीलिया: त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ना
पेशाब का रंग गहरा होना: पेशाब काला पड़ जाना
पेट दर्द और उल्टी: पेट में दर्द और खून की उल्टी होना
मुंह, नाक, आंख या पेट से खून आना
अंगों का खराब होना: लिवर और किडनी फेल हो सकती है
शॉक: रक्तचाप कम हो जाना
गंभीर अवस्था में पहुंचे मरीजों में से लगभग 50% लोगों की मृत्यु हो जाती है।
उपचार
पीला बुखार का कोई विशिष्ट इलाज या एंटीवायरल दवा नहीं है। इसलिए, उपचार मुख्यतः लक्षणों को कम करने और मरीज को सहारा देने पर केंद्रित होता है:
आराम: मरीज को पूरा आराम करने की सलाह दी जाती है।
तरल पदार्थ: निर्जलीकरण से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ देना।
दर्द और बुखार की दवाएं: पैरासिटामोल जैसी दवाएं दी जा सकती हैं, लेकिन एस्पिरिन या NSAIDs नहीं दी जाती, क्योंकि इनसे रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है।
अस्पताल में भर्ती: गंभीर मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती करना जरूरी होता है, जहां उसे गहन देखभाल और सहारा दिया जाता है।
टीकाकरण (Vaccination)
पीला बुखार से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका टीकाकरण है। यह टीका बहुत ही सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है:
किसे लगवाना चाहिए: जो लोग अफ्रीका या दक्षिण अमेरिका के उन क्षेत्रों में रहते हैं या जहां पीला बुखार फैला हुआ है, उन्हें यह टीका जरूर लगवाना चाहिए। साथ ही, जो लोग इन क्षेत्रों की यात्रा करने वाले हैं, उन्हें भी टीका लगवाने की सलाह दी जाती है।
टीके का समय: यात्रा शुरू होने से कम से कम 10 दिन पहले टीका लगवा लेना चाहिए, ताकि शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके।
टीके की अवधि: एक बार टीका लगवाने से ज्यादातर लोगों में आजीवन सुरक्षा मिल जाती है।
साइड इफेक्ट्स: टीके के सामान्य साइड इफेक्ट्स में इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द, लालिमा, हल्का बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान शामिल हैं। गंभीर साइड इफेक्ट्स बहुत कम देखने को मिलते हैं, जैसे मस्तिष्क की सूजन या अंगों का खराब होना, लेकिन ये बहुत ही दुर्लभ हैं।
कौन न लगवाए: 9 महीने से कम उम्र के शिशु, गर्भवती महिलाएं (कुछ मामलों में), और जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है, उन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना टीका नहीं लगवाना चाहिए।
बचाव के अन्य उपाय
साफ-सफाई: अपने आसपास पानी जमा न होने दें, क्योंकि मच्छर स्थिर पानी में ही पनपते हैं।
जोखिम वाले क्षेत्रों में यात्रा से बचें: जहां पीला बुखार फैला हुआ है, वहां यात्रा करने से पहले टीका जरूर लगवाएं।
पीला बुखार: भारत में स्थिति
भारत में अभी तक पीला बुखार का कोई मामला नहीं पाया गया है, लेकिन यात्रियों के माध्यम से इसके आने का खतरा बना रहता है। इसलिए, भारत सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी सतर्क हैं और कुछ राज्यों में टीकाकरण केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।
पीला बुखार के आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, अफ्रीका में हर साल पीला बुखार के कारण हजारों लोगों की मौत होती है। एक अध्ययन के अनुसार, साल 2013 में अफ्रीका में 84,000 से 170,000 गंभीर मामले सामने आए थे और 29,000 से 60,000 लोगों की मृत्यु हुई थी।
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